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10 ठिकानों पर छापेमारी, 14 लड़कियों सहित 21 बच्चें कराए मुक्त

बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए बच्चे उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, ओड़ीशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के मिले। शकरपुर क्षेत्र में सबसे अधिक बच्चें कराए मुक्त। प्लेसमेंट एजेंसी का झांका देकर दिल्ली लाए गए थे बच्चें

LP Live, New Delhi: राजधानी दिल्ली में दो प्लेसमेंट एजेंसियों पर छापों की कार्रवाई में 14 लड़कियों सहित 21 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की अगुआई में की गई कार्रवाई में श्रम विभाग, जिला बाल संरक्षण इकाई (डीसीपीयू), मानव दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) रोधी इकाई, स्थानीय एसडीएम और एसोसिएशन फार वालंटरी एक्शन (एवीए) जिसे बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने एक साथ बड़ी कार्यवाह की है। बीबीए की ओर से मिली एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए इस संयुक्त टीम ने पश्चिमी दिल्ली और उत्तर पश्चिमी दिल्ली जिलों में 10 ठिकानों पर छापे मारे। इसमें 8 से 17 वर्ष के बीच के कुल 21 बच्चों को मुक्त कराया गया, जिन्हें पढ़ाई और बेहतर जीवन का झांसा देकर लाया गया था। छापामार टीमों ने पाया कि इन बच्चों को बेहद दयनीय हालत में रखा गया था। छापों के दौरान 10.5 लाख रुपए की नगदी और सोने के आभूषणों की बरामदगी के साथ ही ऐसे हजारों और बच्चों के बारे में दस्तावेजी जानकारी मिली है।

राजौरी गार्डन, शकरपुर में मिले ज्यादा बच्चें
इन 21 बच्चों में से 5 को राजौरी गार्डेन, 3 को निहाल विहार और 13 बच्चों को शकरपुर से मुक्त कराया गया। छापामार टीम को खास तौर से शकरपुर में छापे के दौरान खासे विरोध का सामना करना पड़ा, जहां मुख्य गेट को बंद कर दिया गया था और चार घंटे बाद दिल्ली के उपराज्यपाल से विशेष अनुमति मिलने के बाद इसे खोला जा सका। छापामार टीम अंदर दाखिल हुई तो पाया कि बच्चे बेहद डरे हुए थे। भूखे और नींद की कमी से जूझ रहे इन बच्चों को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया। ये बच्चे पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे देश के विभिन्न राज्यों के थे।

नौकरी दिलाने का दिया था झांसा
बचपन बचाओ आंदोलन ने एनसीपीसीआर को दो गई शिकायत में यह मुद्दा उठाया था कि बाल दुर्व्यापारी (ट्रैफिकर) प्लेसमेंट एजेंसी होने का नाटक कर नौकरी दिलाने का झांसा देकर गरीब और असहाय परिवारों के बच्चों को लाते हैं। इसके बाद या तो उन्हें नियोक्ताओं को बेच दिया जाता है या वेश्यावृत्ति के धंधे में झोंक दिया जाता है। ऐसे मामले पहले भी प्रकाश में आ चुके हैं।

बच्चों को बचाने के लिए कड़े कानून की जरूरत
बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने बताया कि इस छापामार कार्रवाई से गरीब परिवारों के बच्चों की सुरक्षा और उन्हें शोषण एवं दुर्व्यापारियों से बचाने के लिए तत्काल कड़े कानूनों और उन पर सख्ती से अमल की जरूरत है। उनका मानना है कि अब इन प्लेसमेंट एजेंसियों के नियमन की जरूरत है, क्योंकि ये बाल दुर्व्यापारियों के हाथों में एक खतरनाक औजार बनते जा रहे हैं। ये दुर्व्यापारी अक्सर सुदूर इलाकों के गरीब परिवारों के बच्चों को लुभावने वादों के जाल में फंसाकर या उनके माता-पिता को पैसे देकर बड़े शहरों में लाते हैं। इस देश में बाल मजदूरी की मांग और आपूर्ति का एक दुष्चक्र चल रहा है।

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