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सुप्रीम कोर्ट में मध्यस्था कानून मामले की टली सुनवाई

विशेषज्ञ समिति को रिपोर्ट तैयार करने हेतु चाहिए समय

LP Live, New Delhi: मध्यस्थता कानून के कामकाज की जांच करने और मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम में सुधारों की सिफारिश करने के लिए केंद्र द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को और रिपोर्ट तैयार करने के लिए और अधिक समय की चाहिये। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को टाल दिया है और अब नवंबर के मध्य तक सुनवाई हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने बुधवार को मध्य स्थाु कानून से जुड़े एक मामले की सुनवाई नवंबर के मध्य तक के लिए स्थगित कर दी। जस्टिस हृषिकेश रॉय, पी.एस. नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी के उस अनुरोध को स्वीकार किया है, जिसमें अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सोमवार को सीजेआई से संविधान पीठ के समक्ष आने वाली कार्यवाही को स्थगित करने का अनुरोध किया था।

दरअसल अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मध्यस्थता कानून के कामकाज की जांच करने और मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम 1996 में सुधारों की सिफारिश करने के लिए केंद्र द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को और रिपोर्ट तैयार करने के लिए और अधिक समय की चाहिये। उन्होंंने एक महीने और यानी नवंबर के मध्य तक बढ़ाने का अनुरोध किया था। सीजेआई के नेतृत्व वाली संविधान पीठ इस सवाल पर विचार कर रही है कि क्या कोई व्यक्ति जो किसी विवाद में मध्यस्थ बनने के लिए अयोग्य है, वह किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ के रूप में नामित कर सकता है।

सरकार ने की थी समिति गठित
गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 12 जुलाई को दो महीने की अवधि के लिए सुनवाई टाल दी थी और मामले को 13 सितंबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया था। उस समय वेंकटरमणि ने पांच-न्यायाधीशों की पीठ को बताया था कि विशेषज्ञ समिति ने परामर्श प्रक्रिया शुरू कर दी है और वह सरकार को रिपोर्ट सौंपने में दो महीने से अधिक समय नहीं लेगी। उल्लेखनीय है कि कानून एवं न्याय मंत्रालय ने इस साल 14 जून को कानूनी मामलों के विभाग के पूर्व सचिव टी.के. विश्वनाथन की अध्यक्षता में 16 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया।

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