बच्चों की किड़नी के लिए खतरनाक है नेफ्रोटिक सिंड्रोम

LP Live, Health Desk: बदलती दिनचर्या और गलत खानपान शरीर के अंगों को अधिक नुकसान पहुंचा रहा है। नेफ्रोलाजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डा. रवि सिंह ने बताया कि किड़नी खराब होने से किड़नी ट्रांसप्लांट की संभावनाएं वर्तमान में अधिक बढ़ गई है। बड़ों को शुगर और बीपी के बाद होने वाले बदलाव से किड़नी खराब होने की संभावनाएं होती है, वहीं बच्चों को नेफ्रोटिक सिंड्रोम के कारण किड़नी खराब होने का खतरा है, लेकिन बच्चों की यह बीमारी समय रहते समझकर एक महीने के ट्रीटमेंट में ठीक हो सकती है।
दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स हास्पिटल के नेफ्रोलाजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डा. रवि सिंह मंगलवार को मुजफ्फरनगर स्थित गंगाराम अस्पताल में ओपीडी करने पहुंचे। इस दौरान मरीजों को जागरूक करने के लिए उन्होंने किड़नी की समस्या से जूझ रहे मरीजों से वार्ता की। इस दौरान उन्होंने बताया कि किड़नी ट्रांसप्लांट के मामले बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। किड़नी खराब होने के बीच शुगर, बीपी की बीमारी है, जिसके बाद शरीर के अंगों पर फर्क पड़ता है। प्रतिदिन 45 मिनट तक व्यायाम जरूरी है और बाहर के खाने की मात्रा कम करनी होगी। उन्होंने बताया कि बच्चों को लेकर अधिक ध्यान रखने की जरूरत है।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम बच्चों में एक ऐसी स्थिति है जिसमें गुर्दे शरीर से बहुत अधिक प्रोटीन को मूत्र में बाहर निकालते हैं। इससे शरीर में सूजन, वजन बढ़ना और अन्य समस्याएं हो सकती हैं। यह आम तौर पर बच्चों में 1 से 6 वर्ष की आयु के बीच देखा जाता है और स्टेरॉयड दवाओं से इसका इलाज किया जा सकता है। बताया कि उनके पास दो सगे भाई इस बीमारी को लेकर आए, नियमित ट्रीटमेंट से एक महीने में बच्चों को स्वस्थ बनाया गया है। यह बीमारी आगे जाकर किड़नी खराब करती है। इस बीमरी के लक्षण बच्चों के शरीर में सूजन, वजन बढ़ना, पेशाब में प्रोटीन निकलना, थकान, भूख कम लगना आदि है। ऐसा होने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाए। बच्चों में नेफ्रोटिक सिंड्रोम का सबसे आम कारण किडनी की बीमारी है जो ग्लोमेरुलस को नुकसान पहुंचाती है। यह आमतौर पर अज्ञात कारणों से होता है, लेकिन कुछ मामलों में यह संक्रमण, दवाओं या अन्य बीमारियों से संबंधित हो सकता है।
