उत्तराखंड

पतंजलि की पांच आयुर्वेदिक दवाईयों से हटा प्रतिबंध

अनुसंधान के बाद आयुर्वेद को मिली वैश्विक पहचान

LP Live, Haridwar: वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद को स्वीकार्यता दिलाने वाले पतंजलि संस्थान की पांच दवाईयों को उत्तराखंड आयुर्वेदिक एवं यूनानी निदेशालय ने प्रतिबंधित कर दिया था। उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि की दवाईयों के प्रतिबंधित कार्रवाई का संज्ञान लेकर इसे त्रुटिवश माना और इन दवाईयों के निर्माण पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है।
इस सबंध में उत्तराखंड आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवायें देहरादून के लाइसेंस अधिकारी डा. जीसीएस जगपांगी ने पतंजलि संस्थान की मैसर्स दिव्य फार्मेसी हरिद्वार को शनिवार को एक पत्र के जरिए अवगत कराया है कि उनकी फर्म द्वारा निर्मित की जा रही औषधियों दिव्या मधुग्रिट टेबलेट, दिव्या इग्रिट गोल्ड, दिव्या थीरोग्रिट टेबलेट, दिव्या बीपीग्रिट टेबलेट और दिव्या लिपिडोम टेबलेट का निर्माण कार्य बंद करने की कार्रवाई त्रुटिवश हुई। इसलिए निदेशालय इन पांचों औषधियों के निर्माण कार्य में त्रुटिवश लगी रोक को संशोधित करते हुए निर्माण कार्य को यथावत रखे जाने की अनुमति प्रदान की जाती है। गौरतलब है कि पतंजलि आयुर्वेद पर अनुसंधान करके आयुर्वेद को विश्वभर भर में स्वीकार्यता दिला चुका है और सैकड़ो की संख्या में अनुसंधान पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। प्रधानमंत्री ने भी आयुर्वेद की परंपरा को पहचान दिलाने के लिए पतंजलि को प्रोत्साहित किया है। इन दवाईयों पर प्रतिबंध के बाद फर्म द्वारा इन दवाईयों का ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक एक्ट के प्रावधानों के अनुसार निर्माण करने के लिए अनुसंधान के बाद निर्माण करने का तर्क देते हुए विरोध जताया। इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने त्रुटिवश बैन करने पर गलती मानते हुए फर्म द्वारा निर्मित की जा रही इन से प्रतिबंध हटा दिया है। उत्तराखंड सरकार ने इस अविवेकपूर्ण निर्णय का संज्ञान लेकर इस त्रुटिपूर्ण कार्रवाई में भूल सुधार करके इन प्रतिबंधित दवाईयों पर लगे प्रतिबंध को हटाया दिया है।
आयुर्वेद को बदनाम करने का प्रयास
इस संबन्ध में फर्म के प्रवक्ता ने बताया कि जिस विभाग का कार्य आयुर्वेद को गौरव दिलाते हुए आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति के रूप में प्रतिष्ठापित कराना था, वही आयुर्वेद को बदनाम करके आयुर्वेद को मिटाने में लगा था। उत्तराखंड आयुर्वेद के एक लाइसेंस अधिकारी की असंवेदनशील, अविवेकपूर्ण एवं त्रुटि से आयुर्वेद की परंपरा व प्रमाणिक अनुसंधान पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना निंदनीय कार्य रहा, जिसका अहसास सरकार को भी हुआ। जबकि वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक अनुसंधान पत्र प्रकाशित हुए। इसके तहत दो मान्यता प्राप्त एनएबीएच हॉस्पिटल और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के स्तर मान्यता प्राप्त अनेक एनएबीएल अनुसंधान लैब भी हैं।

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