लोकसभा चुनाव: मिर्जापुर सीट पर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया की हैट्रिक पर संकट..?
विपक्षी दलों ने राजग प्रत्याशी के खिलाफ रचा जातीगत समीकरण का चक्रव्यूह


इंडी गठबंधन से सपा ने भाजपा के मौजूदा सांसद को बनाया अपना प्रत्याशी
LP Live, New Delhi: उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल की मिर्जापुर लोकसभा सीट पर भाजपानीत राजग घटक के अपना दल(सोनेलाल) की प्रत्याशी एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया सिंह पटेल तीसरी बार चुनाव मैदान में है, जहां वह जीत की हैट्रिक बनाकर इतिहास रचने के प्रयास में हैं। दूसरी ओर इंडी गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी के रुप में सपा के टिकट पर भदोही से भाजपा सांसद रमेश कुमार बिंद ने अनुप्रिया की सियासी राह में कांटे बिछा दिये हैं, तो वहीं अपना दल के कमेरावादी गुट का प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में आ गया है। जबकि बसपा ने इस सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर चुनावी समीकरणों को दिलचस्प बना दिया है। राजग की संयुक्त प्रत्याशी की घेराबंदी करके जिस तरह का चक्रव्यूह रचा गया है, उसे देखते हुए इस बार अनुप्रिया पटेल की यहां सियासी राह आसान नहीं लगती। हालांकि प्रमुख चुनाव मुकाबला राजग और इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन इस सीट पर छोटे दल भी सियासी समीकरणों को प्रभावित करने में सक्षम रहे हैं।
यूपी में यदि मिर्जापुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली पांचों विधानसभा सीटों पर नजर डाली जाए, तो सभी पर राजग के विधायक काबिज है। मसलन शहरी मिर्जापुर, चुनार और मरिहान पर भाजपा, मझवान पर निषाद पार्टी और छानबे (सु) सीट पर अपना दल (एस) के विधायक का कब्जा है। वहीं अनुप्रिया पटेल के चुनाव प्रचार में भाजपा और राजग घटक दलों के दिग्गजों ने यहा पूरी ताकत झोंकी है। लेकिन इंडी गठबंधन ने सपा के पहले से घोषित प्रत्याशी राजेन्द्र बिंद को बदलकर भाजपा से टिकट न मिलने से नाराज भदोही के मौजूदा भाजपा सांसद को अपना प्रत्याशी बनाने का ऐसा दांव खेला है, कि उससे राजग प्रत्याशी के सामने मुश्किलें खड़ी होती दिख रही है। यही नहीं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की घेराबंदी करने वालों में अपना दल के दूसरे कमेरावादी गुट के प्रत्याशी दौलत सिंह भी अनुप्रिया के जातीगत समीकरण को बिगाड़ सकते हैं। यह वहीं सीट है जहां से दो बार दस्यु सुंदरी फूलन देवी भी सपा प्रत्याशी के रुप में दो बार जीत हासिल करके लोकसभा पहुंची है। वहीं एक बार ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल ने भी चुनाव जीतकर इस सीट को चर्चित सीटों में शामिल किया था। जबकि बसपा के सांसद नरेन्द्र कुशवाह के घूसकांड में फंसने पर भी यह सीट चर्चाओं का केंद्र रही है, जिसके लिए कुशवाह को अपनी लोकसभा सदस्य तक गंवानी पड़ी थी।
ऐसा रहा इस सीट का चुनावी सफर
यूपी में पूर्वांचल की मिर्जापुर लोकसभा सीट पर अभी तक 17 लोकसभा के लिए हुए 20 चुनावों में कांग्रेस ने सात, सपा ने चार, भाजपा, अपना दल व बसपा ने दो-दो के अलावा भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी व जनता दल ने एक-एक जीत दर्ज की है। पहले तीन चुनाव में यहां कांग्रेस के सांसद निर्वाचित हुए। साल 1967 के चुनाव में यहां भारतीय जनसंघ ने चुनाव जीता, लेकिन 1971 में फिर कांग्रेस के अजीज इमाम ने जीत दर्ज की। इंदिरा सरकार की विरोधी लहर में 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी के फकीर आलम अंसारी जीतकर लोकसभा पहुंचे, लेकिन उसके बाद फिर अजीज इमाम और फिर उपचुनाव व आम चुनाव जीतकर उमाकांत मिश्रा ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली। साल 1989 के चुनाव में जनता दल के यूसुफ बेग ने कांग्रेस के विजय रथ को ऐसा रोका कि उसके बाद यहां कांग्रेस को आज तक जीत नसीब नहीं हुई। साल 1991 के चुनाव में वीरेन्द्र सिंह ने चुनाव जीतकर पहली बार भाजपा को जीत दिलाई। इसके बाद साल 1996 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने दस्यु फूलन देवी को प्रत्याशी बनाकर पहली जीत दर्ज की, लेकिन 1998 के चुनाव में भाजपा के वीरेन्द्र सिंह ने फूलन देवी को हराकर भाजपा के खाते में दूसरी जीत दर्ज की, लेकिन अगले ही चुनाव में फिर से यहां सपा की फूलन देवी जीत हासिल कर दूसरी बार लोकसभा पहुंची, लेकिन जुलाई 2001 में नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर कुछ लोगों ने उसकी हत्या कर दी और साल 2002 में इस सीट पर उपचुनाव में सपा के रामरति सिंह ने जीत दर्ज की। साल 2004 में इस सीट पर नरेन्द्र कुशवाह ने जीत दर्ज कर बसपा का खाता खोला और 2009 में भी रमेश दूबे ने जीत दर्ज कर यह सीट बसपा की झोली डाली। साल 2014 और 2019 के चुनाव में यहां अपना दल की अनुप्रिया पटेल राजगगठबंधन में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची और केंद्र में मंत्री बनी।
युवा वोटरों की अहम भूमिका
मिर्जापुर लोकसभा सीट पर कुल 19,06,327 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हैं, जिसमें 9,99,442 पुरुष, 9,06,816महिला और 69 थर्डजेंडर मतदाता है। जबकि 18-19 आयु वर्ग के 27,353 मतदाता पहली बार मतदान करेंगे, जिनके साथ 20 से 39 साल तक के करीब साढ़े चार लाख से ज्यादा मतदाओं की भी अहम भूमिका होगी। इस सीट पर 15,168 दिव्यांग तथा 16,227 मतदाता 85 साल व उससे अधिक उम्र के बुजुर्ग मतदाता पंजीकृत हैं। यहां एक जून को 1352 मतदान केंद्रों के 2143 बूथों पर मतदान कराया जाएगा।
सभी दल जातीय समीकरण साधने में जुटे
मिर्जापुर लोकसभा सीट को कुर्मी बाहुल्य लोकसभा सीट के रुप में देखा जाता है। इसी लिए हर राजनीतिक दल यहां जातीय समीकरण के आधार अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारता है। जहां तक इस सीट के जातीय समीकरण का सवाल है उसमें 1.50 लाख ब्राह्मण, 1.50 लाख बिंद (केवट), 1.50 लाख वैश्य, 90 हजार क्षत्रिय, 1.25 लाख कोल, 3.50 लाख पटेल के अलावा ओबीसी व दलित करीब 3-3 लाख, एक लाख 50 हजार मौर्य कुशवाहा 1.50 व मुस्लिम 1.50 लाख और करीब एक लाख यादव मतदाताओं को भी साधने का प्रयास रहता है।
