सूरजकुंड मेले में आकर्षक केंद्र बनी ‘हरियाणवी पगड़ी’
'पगड़ी बंधाओ-फोटो खिंचाओं' के साथ सेल्फी लेने को उमड़े पर्यटक
LP Live, Faridabad: हरियाणा के फरीदाबाद में आयोजित किये जा रहे 36वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में विरासत सांस्कृतिक प्रदर्शनी में ‘हरियाणवी पगड़ी’ पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। हरियाणा का ‘आपणा घर’ में विरासत की ओर से जो सांस्कृतिक प्रदर्शनी लगाई गई है वहां पर ‘पगड़ी बंधाओ-फोटो खिंचाओ’ के माध्यम से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हरियाणा की पगड़ी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
विरासत के निदेशक डा. महासिंह पूनिया का कहना है कि हरियाणा की पगड़ी को अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में खूब लोकप्रियता हासिल हो रही है। पर्यटक पगड़ी बांधकर हुक्के के साथ सेल्फी, हरियाणवी झरोखें से सेल्फी, हरियाणवी दरवाजों के साथ सेल्फी, आपणा घर के दरवाजों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक पगड़ी खूब लोकप्रियता हासिल कर रही है।
पगड़ी संग हुआ था मेले का उद्घाटन
उन्होंने बताया किउद्घाटन के अवसर पर भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तथा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी हरियाणवी पगड़ी बांधकर सूरजकुंड मेले का उद्घाटन किया था। उन्होंने कहा कि लोकजीवन में पगड़ी की विशेष महत्ता है। पगड़ी की परम्परा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पगड़ी जहां एक ओर लोक सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ी हुई है, वहीं पर सामाजिक सरोकारों से भी इसका गहरा नाता है। हरियाणा के खादर, बांगर, बागड़, अहीरवाल, बृज, मेवात, कौरवी क्षेत्र सभी क्षेत्रों में पगड़ी की विविधता देखने को मिलती है। प्राचीन काल में सिर को सुरक्षित ढंग से रखने के लिए पगड़ी का प्रयोग किया जाने लगा। पगड़ी को सिर पर धारण किया जाता है। इसलिए इस परिधान को सभी परिधानों में सर्वोच्च स्थान मिला।
लोक जीवन में पगड़ी का महत्व
पगड़ी को लोक जीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खंडवा, खंडका आदि नामों से जाना जाता है। जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीश काय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कन टोपा, मधील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से जाना जाता है। वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग (सिर) को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि आपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी शिरोधार्य है। यदि पगड़ी के अतीत के इतिहास में झांक कर देखें, तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परम्परा रही है।