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जयपुर में शुरू हुआ अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन

लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्य पर बल

संसद के काम में न्यायपालिका के हस्तक्षेप पर जताई गई नाराजगी
जनप्रतिनिधियों को जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की नसीहत
LP Live, Jaipur: उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने राजस्थान विधानसभा जयपुर में शुरू हुए 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में भारत को लोकतंत्र का जनक करार देते हुए कहा कि लोकतंत्र की मूल भावना ही जनमत का आदर और जन कल्याण सुनिश्चित करना है। लोकतंत्र को कायम रखने के लिए उन्होंने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों के बीच परस्पर सहयोग और सामंजस्य बनाने पर बल दिया।

अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन का दीप प्रज्जवलित करके उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उद्घाटन किया। इस दो दिवसीय सम्मेलन में देशभर के विधानसभा और विधान परिषद अध्यक्ष हिस्सेदारी कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति धनखड ने भारत को मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ के रूप में वर्णित करते हुए कहा कि संसद और विधानसभाओं में व्यवधान की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की और जनप्रतिनिधियों से लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के प्रति सचेत रहने का आग्रह किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संवाद, विमर्श और बहस ही संसद और विधानमंडलों की कार्यवाही को सार्थक बनाते हैं। उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का आव्हानन किया, जिससे लोकतंत्र के ये मंदिर, मर्यादित और सार्थक संसदीय कार्यपद्धति में, उत्कृष्टता के केंद्र बन कर उभर सकें। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद और विधानमंडलों की प्रधानता और संप्रभुता आवश्यक शर्त हैं जिस पर समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने सभी संवैधानिक संस्थाओं से अपनी अपनी मर्यादाओं में रह कर कार्य करने का आग्रह किया।

संसद के बनाए कानून में हस्तक्षेप अमान्य
उप राष्ट्रपति धनखड ने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जब उन्होंने राज्यसभा के सभापति का कार्यभार संभाला तो उन्होंने कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है, तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं। इसी प्रकार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों लेकर कहा कि देश में विधान मंडलों ने न्यायपालिका की शक्तियों और अधिकारों का सदैव सम्मान किया है। इसलिए न्यायपालिका से भी अपेक्षा की जाती है कि वह अपने संवैधानिक मैनडेट का प्रयोग करते समय सभी संस्थाओं के बीच संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत का अनुपालन करे। बिरला ने न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहने की सलाह देते हुए कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों को एक दूसरे का और क्षेत्राधिकार का ध्यान रखते हुए आपसी सामंजस्य, विश्वास और सौहार्द के साथ कार्य करना चाहिए।

आमजन में विश्वास बनाएं जनप्रतिनिधि: बिरला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायी निकायों के प्रति घटते विश्वास पर चिंता व्यक्त करते कहा कि आम जनमानस में विधायिकाओं एवं जनप्रतिनिधियों के बारे में प्रश्न चिन्ह है। उन्होंने कहा कि विधान मंडलों में होने वाली चर्चा अधिक अनुशासित, सारगर्भित और गरिमामयी होनी चाहिए। संविधान की प्रावधानों की उल्लेख करते हुए बिरला ने जोर देकर कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संसद और विधान मंडलों को अधिक प्रभावी, उत्तरदायी और उत्पादकतायुक्त बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि पीठासीन अधिकारियों की जिम्मेदारी है की विधान मंडलों में जनप्रतिनिधियों के माध्यम से नागरिकों की आशाओं, अपेक्षाओं और उनके अभावों, कठिनाइयों की अभिव्यक्ति होने का पर्याप्त अवसर दें। बिरला ने यह भी कहा कि विधायी संस्थाओं द्वारा प्रगतिशील कानून बनाने में जनता की सक्रिय भागीदारी हो और विधायी संस्थाएं युवाओं को एवं महिलाओं को अपनी प्रक्रियाओं से जोड़ें। सम्मेलन का ऐजंडासम्मेलन में राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी व मुख्यमंत्री गहलोत आदि के अलावा देशभर की विधानसभाओं व विधान परिषद के अध्यक्ष हिस्सा ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी का संदेश
इस मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सन्देश भी पढ़ा गया, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सशक्त और समृद्ध करने में हमारे विधायी निकायों की भूमिका सराहनीय है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि समय के साथ बदलते विश्व के अनुरूप देश प्रगति की राह पर अग्रसर है। पिछले कुछ वर्षों में विधायिका के कामकाज में तकनीक के अधिकतम इस्तेमाल से लेकर अनेक अप्रासंगिक कानूनों को खत्म करने तक हमने लगातार ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे जनसामान्य के जीवन में सुखद और सकारात्मक बदलाव सुनिश्चित हो। उन्होंने आशा वक़्त की कि हमारी विधायिकाएं लोगों के हितों की रक्षा के लिए अपनी कार्यप्रणाली में आधुनिक बदलावों के साथ देश की प्रगति में और मजबूती से आगे बढ़ेंगी। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि 21वीं सदी के भारत में लोगों की आकांक्षाएं लगातार बढ़ रही हैं। इस आकांक्षी भारत के अनुरूप हमारी विधायी संस्थाओं से लेकर प्रशासन तक, हमारी व्यवस्थाओं को विधि और नीति निर्माण से लेकर उनके क्रियान्वयन में ज्यादा गतिशील, उत्तरदायी, और लक्ष्योन्मुखी होना अनिवार्य है। आज के नए भारत के लिए हमें संस्थाओं को अधिक प्रभावी, कुशल और तकनीकी रूप से समृद्ध करते रहने की आवश्यकता है।

सम्मेलन का एजेंडा
अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में जी-20 में लोकतंत्र की जननी भारत का नेतृत्व, संसद और विधानमंडलों को अधिक प्रभावी, जवाबदेह और उपयोगी बनाने की आवश्यकता, डिजिटल संसद के साथ राज्य विधानमंडलों को जोड़ना और संविधान के आदर्शों के अनुरूप विधायिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की जा रही है।

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