अब हिन्दी में होगा हरियाणा विधान सभा का कामकाज
विधान सभा अध्यक्ष ने मातृभाषा के लिए जारी किए आदेश
संविधान के अनुच्छेद 343 की अनुपालना के लिए निर्देश
LP Live, Chandigarh: हरियाणा विधानसभा में अब पूरा कामकाज मातृभाषा हिंदी में किया जाएगा। इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने संविधान के अनुच्छेद 343 की अनुपालना के लिए निर्देश जारी कर दिये हैं।
हरियाणा राज्य के गठन हुए 56 साल हो चुके हैं, जिसमें हरियाणा विधानसभा में बदलाव की कवायद भी जारी है। डिजिटलीकरण के बाद अब विधानसभा में पूरा कामकाज मातृभाषा हिंदी में किया जाएगा। हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए योजना के तहत विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने इस संबंद्ध में आदेश जारी किये हैं। अभी तक विधान सभा का कामकाज अंग्रेजी भाषा में किया जा रहा था। विधानसभा के 20 फरवरी को होने जा रहे बजट से पहले विधानभा अध्यक्ष के इन नए आदेशों के बाद विधानसभा सचिवालय में सभी फाइल कार्य, पत्राचार और विधायी कामकाज से संबंधित सभी प्रकार की कार्यवाही हिन्दी भाषा में होगी।
भारतीय संविधान का दिया हवाला
विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय 1 में वर्णित अनुच्छेद 343 के अनुसार ‘संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा।’ 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने व्यापक चर्चा के बाद एक मत से हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि संविधान की अनुपालना के लिए यह निर्देशित किया जाता है कि हरियाणा विधान सभा का पूरा कामकाज हिन्दी भाषा में होगा। इसके लिए देवनागरी लिपी तथा अंकों का अन्तरराष्ट्रीय रूप प्रयोग में लाया जाएगा।
राजभाषा के साथ मातृभाषा भी
विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि हिन्दी न केवल संवैधानिक दृष्टि से राजभाषा है, बल्कि यह प्रदेशवासियों की मातृभाषा भी है। विधान सभा प्रदेश की जनता का शीर्ष विधायी निकाय है। इसलिए यह जनता के हितों को समर्पित है। गुप्ता ने कहा कि जनता के हित कभी भी विदेशी भाषा के माध्यम से पूरे नहीं किए जा सकते। विधान सभा अध्यक्ष ने कहा कि अनेक शोध यह प्रामाणित कर चुके हैं कि किसी भी देश के विकास में उसकी मातृभाषा पर विशेष योगदान रहता है। विश्व के 56 देशों ने शिक्षा के माध्यम से लेकर शासकीय कामकाज अपनी मातृभाषा में करना शुरू किया है। इन सभी देशों ने अंग्रेजी वालों देशों की तुलना में अधिक विकास किया है। चीन, जापान और कोरिया इनके प्रमुख उदाहरण है। यूरोपीय देशों ने भी अपनी-अपनी स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया है।