जनगणना कराने का नहीं राज्य सरकारों को अधिकार
सप्रीम कोर्ट में दायर शपथपत्र दाखिल कर केंद्र ने किया स्पष्ट


बिहार सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसलो को अदालत में चुनौती
LP Live, New Delhi: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र दाखिल करके कहा है कि राज्य सरकारों ने जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार ने यह शपथपत्र बिहार में जनगणना कराए जाने के मामले के विवाद को लेकर किया है। बिहार के जातिगत जनगणना कराने के अदालत में पहुंचे विवाद के बाद अन्य राज्यों में भी जातीय जनगणना कराने की मांग जोर पकड़ने लगी है और आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्षी दल जनगणना कराने के वादों को प्रमुखता से कर रही है। इस विवादों के बीच केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में यह हल्फनामा दाखिल किया गया है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र के माध्यम से बताया कि जनगणना का अधिकार राज्य के पास नहीं है। दरअसल शीर्ष अदालत ने गत सात अगस्त को जातिगत सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। वहीं 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर कोई व्यक्ति बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के दौरान जाति या उप-जाति का विवरण प्रदान करता है, तो इसमें क्या नुकसान है, यदि किसी व्यक्ति का डेटा राज्य सरकार की ओर से प्रकाशित नहीं किया जाएगा। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस.वी. एन भट्टी की पीठ ने पटना हाईकोर्ट के एक अगस्त के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी, जिसमें जातिगत सर्वेक्षण को अनुमति प्रदान की गयी थी। इनमें से कुछ याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह सर्वेक्षण लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
केंद्र सरकार ही अधिकृत: याचिकाकर्ता
इस विवाद में कई तरह के सवालों को लेकर विवाद है। ऐसे सवालों को लेकर एक एनजीओ ने भी बिहार सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैलसे को अदालत में चुनौती दी है। गैर सरकारी संगठनों ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ और ‘एक सोच एक प्रयास’ द्वारा दायर याचिकाओं के अलावा एक और याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने दायर की है, जिन्होंने दलील दी है कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है। कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक जनादेश की दृष्टि से केवल केंद्र सरकार ही जनगणना कराने के लिए अधिकृत है।
