
LP Live, New Delhi (ओ.पी. पाल): भारत ने कुष्ठ रोग नियंत्रण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज की है। वर्ष 1981 में जहाँ कुष्ठ रोग की प्रचलन दर प्रति 10,000 जनसंख्या पर 57.2 थी, वहीं यह दर घटकर 2025 में मात्र 0.57 रह गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार नए पाए गए मामलों में बाल मामलों का प्रतिशत भी लगातार घट रहा है। 2014-15 में 9.04 प्रतिशत से घटकर 2024-25 में सिर्फ 4.68 प्रतिशत रह गया है। मार्च 2025 तक, देश के 31 राज्य और 638 ज़िले प्रति 10,000 जनसंख्या पर 1 से कम प्रचलन दर हासिल कर चुके हैं। यह दर्शाता है कि भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर कुष्ठ रोग उन्मूलन की स्थिति को न केवल बनाए रखा है, बल्कि और भी मजबूत किया है।स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह सफलता निरंतर जनजागरूकता अभियानों, समय पर उपचार और सामुदायिक सहयोग का परिणाम है।
क्या है कुष्ठ रोग:
कुष्ठ रोग या हैन्सन रोग, माइकोबैक्टीरियम लेप्री नामक जीवाणु के कारण होने वाला एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है। यह संक्रमण तंत्रिकाओं, श्वसन तंत्र, त्वचा और आँखों को प्रभावित कर सकता है। इसके लक्षणों में त्वचा पर रंगहीन धब्बे, स्पर्श, दबाव, दर्द, गर्मी और सर्दी का एहसास न होना, मांसपेशियों में कमज़ोरी, असाध्य घाव, विशेष रूप से हाथों, पैरों और चेहरे में विकृतियां, आँखें बंद न कर पाना और कमज़ोर दृष्टि शामिल हैं। कुष्ठ रोग अनुपचारित रोगियों के साथ निकट और निरन्तर संपर्क के दौरान नाक और मुँह से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलता है। इस रोग से डर लगता है क्योंकि यह विकृति का कारण बन सकता है; यही इस रोग से जुड़े पारंपरिक सामाजिक बहिष्कार का कारण भी है। कुष्ठ रोग मल्टीबैसिलरी या पॉसीबैसिलरी हो सकता है। जहाँ एक ओर, मल्टीबैसिलरी कुष्ठ रोग में स्लिट-स्किन स्मिअर परीक्षण में जीवाणुओं का उच्च घनत्व दिखाई देता है, वहीं पॉसीबैसिलरी कुष्ठ रोग के मामलों में स्लिट-स्किन स्मिअॅर परीक्षण में बहुत कम या कोई जीवाणु नहीं दिखाई देते। भारत में 1983 में बहुऔषधि चिकित्सा (एमडीटी) की शुरुआत ने कुष्ठ रोग के उपचार में क्रांति ला दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा रोगियों को एमडीटी उपचार निःशुल्क प्रदान किया जाता है। एमडीटी द्वारा शीघ्र निदान और उपचार से विकलांगता और विकृतियों को रोका जा सकता है। एमडीटी की शुरुआत के बाद से, इस रोग की घटनाओं और प्रचलन में उल्लेखनीय कमी आई है। (WHO)
मार्च 2025 तक प्रति 10000 की जनसंख्या पर राज्यवार एनएलईपी की प्रचलन दरें


| राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | प्रचलन दर/10,000 | राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | प्रचलन दर/10,000 |
| आंध्र प्रदेश | 0.46 | नागालैण्ड | 0.11 |
| अरुणाचल प्रदेश | 0.15 | ओडिशा | 1.37 |
| असम | 0.26 | पंजाब | 0.14 |
| बिहार | 0.85 | राजस्थान | 0.14 |
| छत्तीसगढ़ | 1.80 | सिक्किम | 0.17 |
| गोवा | 0.45 | तमिलनाडु | 0.26 |
| गुजरात | 0.38 | तेलंगाना | 0.46 |
| हरियाणा | 0.13 | त्रिपुरा | 0.02 |
| हिमाचल प्रदेश | 0.14 | उत्तर प्रदेश | 0.37 |
| झारखंड | 1.46 | उत्तराखंड | 0.22 |
| जम्मू एवं कश्मीर | 0.07 | पश्चिम बंगाल | 0.46 |
| कर्नाटक | 0.27 | अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह | 0.19 |
| केरल | 0.11 | चंडीगढ़ | 1.35 |
| मध्य प्रदेश | 0.82 | डीडी और डीएनएच | 0.63 |
| महाराष्ट्र | 1.12 | दिल्ली | 0.71 |
| मणिपुर | 0.05 | लक्षद्वीप | 0.14 |
| मेघालय | 0.03 | लद्दाख | 0.33 |
| मिजोरम | 0.10 | पुदुचेरी | 0.11 |
नोट: यह ताजा आंकड़े स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय

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