
LP Live, New Delhi: केंद्र सरकार ने संसद में 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश कर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। इस विधेयक के अनुसार, यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री ऐसे अपराध में गिरफ्तार होता है जिसमें 5 साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है और 30 दिन के भीतर जमानत नहीं मिलती, तो 31वें दिन स्वतः पद खत्म हो जाएगा।


गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में यह बिल पेश करते हुए कहा कि राजनीतिक शुचिता बनाए रखने के लिए यह कदम जरूरी है। दशकों से ऐसी परंपरा रही है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से पहले नेता इस्तीफा देते रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इस परंपरा का पालन नहीं किया गया।

नैतिकता की जगह राजनीति
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने चारा घोटाले में गिरफ्तारी से पहले कुर्सी छोड़ दी थी।
झारखंड के हेमंत सोरेन ने भी गिरफ्तारी की आशंका के बीच इस्तीफा दिया।
आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल जाने से पहले जयललिता ने भी पद छोड़ा था।
लेकिन हालिया मामलों में तस्वीर बदली दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महीनों जेल से ही सरकार चलाई और बाद में त्यागपत्र दिया। महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक और कर्नाटक के मंत्री वी. सेंथिल बालाजीभी जेल में रहते हुए अपने पद पर डटे रहे, जब तक कि अदालत के आदेश न आए।
विपक्ष की बढ़ी चिंता
विपक्ष का आरोप है कि इस कानून का दुरुपयोग कर सत्ता पक्ष राजनीतिक विरोधियों को निशाना बना सकता है। कांग्रेस और अन्य दलों ने सवाल उठाया है कि क्या यह कदम लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर नहीं करेगा।
हालांकि भाजपा का तर्क है कि जब चुनाव लड़ने के लिए दो साल की सजा वाले नेताओं पर रोक का समर्थन कांग्रेस कर चुकी है, तो अब ऐसे बिल का विरोध क्यों?
सरकार को भरोसा है कि यह विधेयक संसद से पारित हो जाएगा। लेकिन यदि विपक्ष ने अड़ंगा लगाया, तो आने वाले दिनों में यह मुद्दा बड़ा राजनीतिक हथियार बन सकता है।











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