
लोकपथ लाइव, मुजफ्फरनगर। राष्ट्रवाद के अग्रदूत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा वर्ष 1875 में रचित राष्ट्रगीत वंदे मातरम् गीत के 150 वर्ष पूर्ण होने पर जनपद में वंदे मातरम् के सामूहिक वाचन कार्यक्रम हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के संबोधन के बाद जिला पंचायत सभागार में डीएम उमेश मिश्रा ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का गीत गाया, जिसको कलेक्ट के सभी उपस्थित अधिकारियों कर्मचारियों ने दोहराया। इसके बाद जनपद के सभी विभागों में भी अधिकारियों व कर्मचारियों ने कार्यालय में सामूहिक गीत गाकर राष्ट्रीय गीत का सम्मान किया।


कलेक्ट्रेट सभागार में डीएम उमेश मिश्रा ने सभी अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ वंदे मातरम् गीत गाया। इसके बाद उन्होंने बताया कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1882 में लिखित प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ की कथानक में वर्णित गीत (1875) संस्कृत व बांग्ला भाषा में मिश्रित वंदेमातरम गीत भारतीय संविधान सभा द्वारा 24 जनवरी 1950 को “राष्ट्रीय गीत” घोषित हुआ था। इस दौरान एडीएम वित्त एवं राजस्व गजेंद्र कुमार, एमडीएम प्रशासन संजय कुमार सिंह, जिला प्रोबेशन अधिकारी संजय कुमार, नगर मजिस्ट्रेट पंकज प्रकाश राठौड़ सहित अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
उधर, जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय में में राष्ट्रीय वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने उपलक्ष्य में वंदे मातरम का सामूहिक वचन किया। वहीं, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग मुजफ्फरनगर में राष्ट्रीय वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने उपलक्ष्य में वंदे मातरम का सामूहिक वचन किया। इस दौरान सहायक आयुक्त अर्चना धीरान सहित अन्य कर्मचारी मौजूद रहे।

कस्तूरबा गांधी विद्यालय में बालिकाओं के साथ सामूहिक गायन
राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने शहर के कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में सामूहिक गायन का हुआ आयोजन हुआ। डीएम उमेश मिश्रा, सीडीओ कंडारकर कमलकिशोर देशभूषण के निर्देश पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी संदीप कुमार के नेतृत्व में डा. राजीव कुमार द्वारा राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने पर कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में वन्दे मातरम राष्ट्रीय गीत का सामूहिक गायन व वचन किया। इस दौरान बालिकाओं को बताया कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम हमारी स्वतंत्रता संग्राम की वीर गाथा का प्रत्यक्ष साक्षी रहा है । बंकिमचंद्र चटोपाध्याय द्वारा सन 1875 में इस गीत की रचना की गई थी जिसका स्वर वाचन सन 1896 में रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा किया गया था।












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