

याचिकाकर्ता ने अदालत से की है पहचान के साथ नोट बदलने की मांग
LP Live, New Delhi: भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दो हजार रुपये के नोट को बदलने के लिए सितंबर के अंत तक का समय दिया है। इस मामले में दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया है।
आरबीआई के दो हजार के नोट को लेकर जारी फैसले के खिलाफ 29 मई को दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसमें आईडी यानी पहचान के साथ नोट बदलने की मांग की गई थी और हाई कोर्ट ने इस मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इस फैसले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तत्काल सुनवाई करने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और के.वी. विश्वनाथन ने व्यक्तिगत रूप से पेश हुए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि अदालत छुट्टी के दौरान इस प्रकार के मामलों को नहीं ले रही है और वे भारत के मुख्य न्यायाधीश से इसका उल्लेख कर सकते हैं। अधिवक्ता उपाध्याय का तर्क है कि आरबीआई के आदेश के बाद अपहरणकर्ता, गैंगस्टर, ड्रग तस्कर और खनन माफिया बड़े पैमाने पर दो हजार के नोट के रुप में आदान प्रदान कर रहे हैं, इसके लिए मीडिया में आई रिपोर्ट का भी उन्होंने हवाला दिया है, जिसमें 50 हजार करोड़ रुपये के लेन देन की आशंका जताई गई है। ऐसा होता रहा तो सारा काला धन सफेद हो जाएगा, इसलिए नोट बदलने में पहचान होना आवश्यक है। इस पर कोर्ट ने इस मामले को आरबीआई के संज्ञान में लाने को कहा है।

क्या थी आरबीआई की घोषणा
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में 2,000 रुपये के नोटों को वापस लेने की घोषणा करते हुए स्पष्ट किया था कि व्यक्ति किसी भी बैंक की किसी भी शाखा में 2,000 रुपये के नोट बदल सकते हैं। नोट एक्सचेंज के लिए कोई पहचान देने या कोई फॉर्म भरने की जरूरत नहीं है। इस पर भारतीय जनता पार्टी नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने बिना किसी पहचान प्रमाण के 2,000 रुपये के नोट को बदलने वाले आरबीआई के आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
क्या था दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका में की गई मांग का सुनवाई के दौरान आरबीआई ने कड़ा विरोध किया और कोर्ट से इसे खारिज करने और याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने का अनुरोध किया। आरबीआई के वकील ने इसे आर्थिक नीति का मामला बताते हुए कोर्ट के पुराने फैसलों का उदाहरण भी दिया, जिसमें कहा गया था कि कोर्ट को आर्थिक नीति के मामलों में दखल नहीं देना।
