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आशा-आंगनवाड़ियों की निगरानी कमजोर, ओपीडी से चल रही एनआरसी

लोकपथ लाइव, मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर जिले में कुपोषण से लड़ने की सरकारी कवायद आशा और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की कमजोर पकड़ के चलते प्रभावहीन होती दिख रही है। पिछले एक वर्ष की रिपोर्ट बताती है कि पोषण पुनर्वास केन्द्रों (एनआरसी) तक कुपोषित बच्चों को पहुंचाने में आशा और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां रुचि नहीं ले रही है, जिसके चलते क्षेत्रों से बच्चे चिन्हित नहीं हो रहे हैं। सबसे ज्यादा बच्चे जिला अस्पताल की ओपीडी से पहुंच रहे हैं। कुछ जागरूक लोग स्वयं भी बच्चों को लेकर एनआरसी केंद्र पहुंच रहे हैं।
जिला अस्पताल में कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों की देखरेख व उनका वजन बढ़ाने के लिए बच्चों को एनआरसी में कई दिन भर्ती कराया जाता है। कुपोषित बच्चों की पहचान कर उन्हें एनआरसी में भेजने की पहली जिम्मेदारी आशा और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व आरबीएसके टीम की होती है, लेकिन वर्षभर में इनकी ओर से भेजे गए बच्चों की संख्या बेहद कम रही। इससे स्पष्ट होता है कि फील्ड स्तर पर चिह्नित करने का काम प्रभावी रूप से नहीं हुआ। एक साल की रिपोर्ट पर स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि नियमित मॉनिटरिंग, सर्वे और घर-घर जांच में लापरवाही के कारण अधिकांश बच्चे कुपोषण के दायरे में होने के बावजूद सूचीबद्ध ही नहीं हो पा रहे हैं। एनआरसी में पिछले एक साल में जिला अस्तपाल की बाल रोग की ओपीडी से कुपोषित बच्चे एनआरसी भेजे गए हैं, जो आशा-आंगनबाड़ियों की गंभीरता की पोल खोलती है। आरबीएसके टीम भी कुपोषित बच्चों के लिए वह कार्य नहीं कर रही है, जो उन्हें करना चाहिए। एक वर्ष की रिपोर्ट बताती है कि सभी तहसीलों में यही हाल है। कई तहसीलों में आरबीएसके टीम भी कम में फिड्डी है।

एनआरसी में भर्ती कुपोषित बच्चों को भेजने के माध्यम
आरबीएसके -16
आरबीएसके व एकडब्लूडब्लू- 56
एकडब्लूडब्लू- 16
ओपीडी- 54
स्वयं पहुंचे- 31
नोट- यह आंकड़े वर्ष 2024-25 वित्तवर्ष के हैं।

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एक वर्ष में ब्लाक वार भर्ती बच्चें
चरथावल- 14
मोरना- 29
शाहपुर- 22
बुढ़ाना- 00
सदर-43
खतौली- 14
बघरा- 00
पुरकाजी-16
नगर- 40
कुल- 178
बोले जिम्मेदार-
जिला अस्पताल की एनआरसी में भर्ती बच्चों की संख्या घट गई है। जिला अस्पताल की ओपीडी व खुद की जागरूकता से बच्चे भर्ती हो रहे हैं। आरबीएसके व आशा-आंगनवाड़ियां कुपोषित बच्चों को भर्ती कराने के लिए गंभीरत से काम नहीं कर पा रही है। इससे कुपोषण घटने की बजाए बढेगा।
– आरती नंनदवार, चिकित्साधिकारी, एनआरसी

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