
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर निवासी अशोक बालियान द्वारा वर्णित अमेरिका यात्रा का अनुभव प्रवासी भारतीय जीवन की एक सजीव झलक प्रस्तुत करता है। विदेश भूमि पर बसे भारतीय जिस समर्पण और उत्साह से अपने त्योहारों, परंपराओं और संस्कृति को जीवित रखते हैं, वह वास्तव में प्रेरणादायक है। दीपावली जैसे उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रह जाते, बल्कि वे भारतीय समुदाय के एकता और सामूहिकता के प्रतीक बन जाते हैं।
अशोक बालियान बताते हैं कि हमें अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान अपनी पुत्री शालिनी बालियान–शिवप्रताप सिंह के साथ अप्रवासी भारतीय परिवार सुनील अग्रवाल-अर्चना व संस्कृति-भावेश कुमार के निवास पर दीपावली उत्सव के उपरान्त एक मिलन कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। भारतीय परिवार में सुनील अग्रवाल-अर्चना व उनकी पुत्रवधू मनप्रीत-अभिनव के यहाँ अमेरिका में कार्यरत बेटी प्रियंका -मुदित भी इस मिलन कार्यक्रम में शामिल हुई तथा संस्कृति–भावेश कुमार के माता-पिता, बिहार से अपनी पुत्री संस्कृति से मिलने अमेरिका आए हुए हैं।
सुनील अग्रवाल-अर्चना, सृष्टि–भावेश कुमार और उनके परिवारों द्वारा आयोजित यह दीपावली मिलन कार्यक्रम इस बात का प्रमाण है कि भारतीय मूल के लोग चाहे विश्व के किसी भी कौने में हों, अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े रहते हैं। सायंकाल लक्ष्मी–गणेश पूजा, भजन, नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियाँ यह दर्शाती हैं कि भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता और कलात्मकता का अद्भुत संगम है।
अशोक बालियान बताते हैं कि सुनील अग्रवाल-अर्चना व सृष्टि-भावेश कुमार एक अच्छे परिवार से संबंध रखते हैं, क्योंकि किसी व्यक्ति की पहचान बहुआयामी होती है और यह परिवार, समुदाय, शिक्षा, जाति, धर्म तथा अन्य कारकों से निर्मित होती है।
अमेरिका में कुछ प्रवासी हिन्दुओं ने अन्य धर्मों के अमेरिकियों से विवाह किया है, और ऐसे परिवारों के बच्चे अब अपने धर्म को नए ढंग से समझने और व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहे हैं। हिन्दू बच्चे, जो विभिन्न धर्मों, नस्लों और संस्कृतियों के बीच बड़े हो रहे हैं, वें भी हिन्दू धर्म को एक अलग दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के साथ देखते हैं।
अशोक बालियान ने बताया कि उनकी यात्रा के दौरान हमें सुनील अग्रवाल ने बताया कि अमेरिका में प्रवासी भारतीयों ने लगभग सभी प्रमुख शहरों में हिंदू मंदिरों की स्थापना की है। ये मंदिर केवल उपासना स्थल नहीं हैं, बल्कि धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, संस्कार और भारतीय भाषाओं के संरक्षण का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुके हैं।
उन्होंने हमें यह भी बताया कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथ संस्कृत में हैं और मंत्रों का अंग्रेज़ी में अनुवाद करना कठिन होता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे वास्तव में अर्थ समझें, तो हमें उन्हें उस भाषा में पढ़ाना होगा,जिसमें वे सहज रूप से पढ़ सकते हैं।
अमेरिका में भारतीय प्रवासी हिन्दुओं ने एक विशिष्ट पहचान बना रखी है। यहाँ भारतीय संस्कृति की यह झलक हमारे लिए अत्यंत प्रेरणादायक अनुभव रही।
लेखक: अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
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