
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को दी हवा
बसपा की तर्ज पर बिछाई सियासी बिसात बन सकती है मायावती के लिए कड़ी चुनौती
लोकपथ लाइव, मुजफ्फरनगर(ओ.पी. पाल): जब पूरे देश में बुधवार को 75वां संविधान दिवस मना रहा था, तो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में आजाद समाज पार्टी संवैधानिक अधिकार बचाओ भाईचारा बनाओ महारैली के जरिए यूपी में आगामी पंचायत चुनाव और उसके बाद 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी करने में जुटी रही, जिसमें उमड़ी भीड़ में दलित-मुस्लिम गठजोड़ की आवाज बुलंद होती नजर आई। आसपा की यह सियासत बसपा प्रमुख मायावती की पिछले महीने लखनऊ में दलित-मुस्लिम को एकजुट करने की कवायद को चुनौती मानी जा रही है। वहीं प्रदेश में अन्य बड़ा सियासी दलों के लिए भी बड़ा झटका साबित हो सकता है।


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर स्थाित जीआईसी मैदान में बुधवार को आजाद समाज पार्टी की संवैधानिक अधिकार बचाओ भाईचारा बनाओ महारैली की तैयारियों के मद्देनजर उमड़े जनसैलाब से यूपी में आगामी पंचायत चुनाव और उसके बाद 2027 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से दलित-मुस्लिम गठजोड़ की आवाज बुलंद होती नजर आई। यही नहीं इस महारैली में दलित-मुस्लिम नताओं कों मंच साझा करने का पूरा मौका दिया गया। आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं नगीना संसदीय क्षेत्र के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने महारैली में दलितों के साथ मुस्लिमों के हक की केवल बात नहीं की, बल्कि मंच पर दिग्गज मुस्लिम नेताओं अपनी पार्टी मतें शामिल करके यूपी में नये सियासी समीकरण की बिसात बिछाने की कवायद को हवा दे डाली है। गौरतलब है कि पिछले माह लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने दलित-मुस्लिम को एकजुट करने के मकसद से उत्तर प्रदेश के सभी 18 मंडलों यानि प्रत्येक मंडलवार मुस्लिम समाज भाईचारा संगठन के तहत एक दलित और एक मुस्लिम को संयोजक बनाये है, जो प्रत्येक विधानसभा वार मुस्लिम समाज में जाकर उनके बीच-बीच छोटी-छोटी बैठक कर पार्टी के सदस्य बनाने का अभियान शुरु किया था।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नया समीकरण
उत्तर प्रदेश में जहां आगामी अप्रैल में पंचायत चुनाव संभावित हैं, जिसके बाद विधानसभा 2027 होने हैं। इसी राजनीतिक दृष्टि से आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने उत्तर प्रदेश, खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासत से नए समीकरण तैयार करने का अभियान संविधन दिवस पर मुजफ्फरनगर की धरती से शुरु किया है। मसलन संविधान दिवस पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दृष्टिकोण से मुजफ्फरनगर जिला सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, जहां से संवैधानिक अधिकार बचाओ भाईचारा बनाओ महारैली के बहाने यूपी में कमजोर बढ़ती बसपा की जमीन से युवाओं को अपने साथ खींचने में कामयाब नजर आई आसपा ने दलित और मुस्लिमों के भाईचारे का गठजोड़ तैयार करके एक तरह से बसपा सुप्रीमों मायावती के सामने सियासी चुनौती पेश कर दी है।
कई दलों में मची हलचल
उत्तर प्रदेश में सक्रीय अन्य बड़े सियासी दलों के सामने भी आसपा मुश्किलें खड़ी कर सकती है। यानी बुधवार की महारैली नक यह भी साबित किया है कि दलित वर्ग बड़ी संख्या में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के साथ खड़ा है। वही दूसरा मुस्लिम वर्ग को जोड़ने के लिए मंच से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने उनके हक को लेकर ऐसी बाते कही कि उनका पलड़ा आसपा की तरफ झुकता नजर आयाए जहां उनका मनोबल बढ़ाने के लिए उन्होंने मुस्लिम समाज के दिग्गजों को अपने साथ जोड़ने की रूपरेखा भी तैयार ही नहीं की, बल्कि बसपा से बिजनौर में पूर्व विधायक रहे शाहनवाज राणा और समर्थकों को रालोद में सेंधबाजी करते अपनी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई, जिनके समधि एवं पूर्व विधायक मौ. गाजी पहले ही उनकी आसपा के पदाधिकारी हैं। इस दौरान महारैली में मुस्लिम समाज के जानेमाने चहरे वरिष्ठ नेता व पूर्व एमपी अमीर आलम खां और उनके पुत्र पूर्व विधायक नवाजिश आलम के अलावा अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी मंच साझा किया, जिनके चहरे पर ही बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज की भीड़ उनके साथ खड़ी हो गई।
साझेदारी की चाबी बनेगी आसपा?
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो की उत्तर प्रदेश राजनीति में मुस्लिम और दलित गठजोड़ सत्ता में साझेदारी की चाबी पाने का बड़ा फार्मूला है। महारैली में शायद मंच से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इसलिए यह बात कही कि जब तक हमारे बीच से सीएम और पीएम नहीं बनेंगे, हमारे अच्छे दिन नहीं आएंगे। अगर यह ऊर्जा और गठजोड़ जमीनी स्तर पर कायम रहता है, तो यह महारैली केवल भीड़ का जमावड़ा नहीं, बल्कि 2027 के लिए पश्चिम यूपी में नई राजनीतिक हवा का इबारत बन सकती है। एक ऐसी सियासत, जो दलित-मुस्लिम गठजोड़ को केंद्र में रखकर मौजूदा सत्ता समीकरणों को चुनौती देने में सफल होगी।












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