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दिल्ली में ‘हिमाचल भवन’ क्यों होगा नीलाम! पढ़े….

हिमाचल हाई कोर्ट ने इसलिए दिया कुर्क करने का आदेश

सरकार बिजली का बकाया 150 करोड़ का भुगतान करने में रही विफल
LP Live, Shimla: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित हिमाचल भवन को कुर्क करने के आदेश जारी किये हैं। कोर्ट ने यह आदेश सेली हाइड्रो इलैक्ट्रिक पावर कंपनी लिमिटेड द्वारा ऊर्जा विभाग के खिलाफ दायर अनुपालना याचिका पर सुनवाई के पश्चात दिए। वहीं कोर्ट ने एमपीपी और पावर विभाग के प्रमुख सचिव को इस बात की तथ्यात्मक जांच करने के आदेश भी दिए कि किस विशेष अधिकारी अथवा अधिकारियों की चूक के कारण 64 करोड़ रुपए की 7 फीसदी ब्याज सहित अवार्ड राशि कोर्ट में जमा नहीं की गई है।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 13 जनवरी 2023 को प्रतिवादियों को याचिकाकर्त्ता द्वारा जमा किए गए 64 करोड़ रुपए के अग्रिम प्रीमियम को याचिका दायर करने की तारीख से इसकी वसूली तक 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित वापस करने का निर्देश दिया था। लेकिन हिमाचल सरकार उसका भुगतान करने में विफल रही है, जिसके कारण ब्याज बढ़ने से यह बकाया राशि 150 करोड़ रुपये हो गई है। अदालत ने एमपीपी और पावर विभाग के प्रमुख सचिव को इस बात की तथ्यात्मक जांच करने के आदेश भी दिए कि इस मामले में दोषियों का पता लगाना इसलिए जरूरी है क्योंकि ब्याज को दोषी अधिकारी अधिकारियों/कर्मचारियों से व्यक्तिगत रूप से वसूलने का आदेश दिया जाएगा। कोर्ट ने 15 दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करने और जांच की रिपोर्ट अगली तारीख को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत के आदेश भी दिए। मामले पर सुनवाई 6 दिसम्बर को होगी। यह मामला लाहौल-स्पीति में चिनाब नदी पर बनने वाले 400 मेगावाट सेली हाइड्रो प्रोजेक्ट के संदर्भ में उठाया गया था। अदालत ने साफ किया कि यह राशि राज्य के खजाने से जा रही है, जिसका नुकसान जनता को उठाना होगा, इसलिए कंपनी को हिमाचल भवन को नीलाम कर अपनी रकम वसूलने की अनुमति दी गई है।

पहले स्टे भी दिया गया
इस फैसले पर खंडपीठ ने इस शर्त पर रोक लगा दी थी कि यदि प्रतिवादी उपरोक्त राशि कोर्ट में जमा करवाने में असमर्थ रहते हैं तो अंतरिम आदेश हटा लिए जाएंगे। राशि जमा न करने पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 15 जुलाई 2024 को एकल पीठ के फैसले पर लगाई रोक को हटाने के आदेश जारी किए। इन तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्रतिवादी राज्य के पक्ष में कोई अंतरिम आदेश नहीं है, इसलिए आर्बिट्रेशन अवार्ड को लागू किया जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि सरकार द्वारा अवार्ड राशि जमा करने में देरी से दैनिक आधार पर ब्याज लग रहा है, जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाना है।

सीपीएस की नियुक्ति असंवैधानिक करार
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त छह मुख्य संसदीय सचिवों को हटाने के आदेश भी दिये हैं, क्यों कि न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और बिपिन चंद्र नेगी की पीठ ने छह मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2006 के सीपीएस एक्ट को निरस्त करने के साथ सीपीएस की सभी सरकारी सुविधाएं तत्काल प्रभाव से वापस लेने का आदेश दिया था। दरअसल हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार ने कांग्रेस के छह विधायकों को सीपीएस बनाया था। इस नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए कल्पना नाम की महिला के अलावा 11 भाजपा विधायकों और पीपुल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस नामक संगठन ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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