आपातकाल के प्रस्ताव से अलग थलग पड़ी कांग्रेस
लोकसभा में निंद प्रस्ताव पर इंडिया ब्लाक के दलों नजर आई फूट
लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर कांग्रेस ने प्रस्ताव पर जताई आपत्ति
LP Live, New Delhi: लोकसभा चुनाव से लेकर लोकसभा के गठन तक विपक्ष की ओर से संविधान बचाओं की रट पर भाजपा के दांव से कांग्रेस चित्त होती नजर आई। लोकसभा में जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की तरफ से इंदिरा गांधी सरकार द्वारा विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए लगाए गए आपातकाल की निंदा का प्रस्ताव पढ़ा गया, तो कांग्रेस को छोड़ कर सभी दलों ने प्रस्ताव का समर्थन किया और सदन में कांग्रेस अलग थलग नजर आई। अब कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष को एक पत्र लिखकर आपातकाल के निंदा प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज कराई है।
दरअसल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में आपातकाल लगाए जाने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि ये सदन 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था। इस दौरान कांग्रेस से न केवल सपा और द्रमुक जैसे सहयोगियों से अलग होती नजर आई बल्कि आश्चर्यजनक रूप से तृणमूल कांग्रेस भी अलग हो गई।
राहुल की बिरला से मुलाकात
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को मुलाकात की। इस बीच कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा अध्यक्ष द्वारा आपातकाल पर दिए गए प्रस्ताव पर नाराजगी व्यक्त की है। इस विषय पर कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि स्पीकर की कुर्सी दलगत राजनीति से ऊपर है। माननीय अध्यक्ष ने बुधवार को राजनीतिक टिप्पणियों के साथ जो कहा है वह संसदीय परंपराओं का उपहास है। दूसरी ओर लोकसभा में आपातकाल के जिक्र के मुद्दे पर केसी. वेणुगोपाल ने लोकसभा अध्यक्ष को बाकायदा एक पत्र लिखा है। अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि लोकसभा अध्यक्ष के रूप में आपके चुनाव पर बधाई देते समय, सदन में सामान्य सौहार्द था। हालांकि उसके बाद जो हुआ, जो आधी सदी पहले आपातकाल की घोषणा के संबंध में आपके स्वीकृति भाषण के बाद अध्यक्ष द्वारा दिया गया संदर्भ, वह बेहद चौंकाने वाला है।
भाजपा की रणनीति
कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी के अलावा यह त्वरित कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे एक बार फिर भाजपा की तरफ से कांग्रेस को ‘संविधान-खतरे में’ वाले दांव के रूप में जवाब देने की प्रतिबद्धता का संकेत मिलता है। दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल ने इस मुद्दे का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया था। साथ ही यह भी पता चलता है कि भाजपा किस प्रकार से इंडिया ब्लॉक में मतभेदों को बढ़ाने के लिए तैयार है।