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देश में ऊर्जा के क्षेत्र में लगा एक ओर मील का पत्थर

एनएचपीसी ने पूरी की सुबनसिरी लोअर जलविद्युत परियोजना

परियोजना से होगा दो हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन
LP Live, New Delhi: चीन से सटे अरुणाचल प्रदेश व असम में स्थित 2,000 मेगावाट की सुबनसिरी लोअर जल विद्युत परियोजना को एनएचपीसी लिमिटेड ने पूरा करके ऊर्जा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर लगा दिया है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को परियोजना में समुद्र तक से 210 मीटर के उच्चतम स्तर तक बांध का निर्माण पूरा कर ली गई है।

केंद्रीय ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने पिछले महीने ही इस महत्वपूर्ण विद्युत परियोजना की प्रगति की समीक्षा की थी, जिसमें जब तक परियोजना ने बांध कंक्रीटिंग में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल कर ली थी और इसमें 14 ब्लॉकों ने 210 मीटर का उच्चतम स्तर प्राप्त किया था। अब बाकी दो ब्लॉक का काम भी पूरा कर ली है। इस 2,000 मेगावाट की सुबनसिरी लोअर जल विद्युत परियोजना को देश की अग्रणी राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम लिमिटेड द्वारा क्रियान्वित किया गया है। 2,000 मेगावाट की सुबनसिरी लोअर जल विद्युत परियोजना के काम को सभी ब्लॉकों में शीर्ष ऊंचाई के स्तर यानी समुद्र तक से 210 मीटर के उच्चतम स्तर तक बांध का निर्माण कार्य पूरा करके महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की गई है।

जल्द ही बिजली उत्पादन शुरु होने की उम्मीद
राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम (एनएचपीसी) के प्रवक्ता ने बताया कि कि परियोजना का 90 प्रतिशत से अधिक काम पहले ही पूरा हो चुका है। बांध, पावर हाउस और हाइड्रोमैकेनिकल वर्क्स समेत सभी प्रमुख घटकों का निर्माण कार्य तेजी से पूरा करने के लिए अग्रसर है। इसमें रेडियल गेटों का बचा हुआ काम मानसून सीजन के बाद पूरा हो जाएगा और वित्तीय वर्ष 2023-24 के अंत तक बिजली उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। इस सुबनसिरी लोअर जल विद्युत परियोजना से 90 प्रतिशत-डिपेन्डबल वर्ष में, लगभग 7,500 मिलियन किलोवाट-घंटे वार्षिक की दर से बिजली पैदा की जाएगी।

साल 2005 में शुरु हुआ था निर्माण
राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम (एनएचपीसीएल) ने 12 अक्टूबर 2004 को वन स्वीकृति प्राप्त करने के बाद जनवरी 2005 में सुबनसिरी लोअर जल विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य शुरू किया। हालांकि, स्थानीय हितधारकों के आंदोलन और विरोध के कारण, परियोजना का निर्माण कार्य दिसंबर 2011 से अक्टूबर 2019 तक रुका रहा। राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्वीकृति प्राप्त होने के बाद 15 अक्टूबर 2019 से इस परियोजना का कार्य फिर से शुरू किया गया था।

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