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नियमों के पालन के साथ असहमति लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा

मुंबई में 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में बोले हरिवंश

LP Live, Mumbai: 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा कि असहमति किसी न किसी रूप में हमेशा लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा रही है, लेकिन यह सदन के नियमों और प्रक्रियाओं का पालन के साथ एक सीमा के भीतर होनी चाहिए।

राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने मुंबई स्थित महाराष्ट्र विधानसभा परिसर में आयोजित इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इन दिनों व्यवधान सत्र के पहले कुछ दिनों से शुरू होते हैं और कई दिनों तक जारी रहते हैं जो यह दर्शाता है कि ये व्यवधान अक्सर योजनाबद्ध होते हैं और जिसका उद्देश्य विधायिका के प्राथमिक कार्य को बाधित करना होता है। कई सदस्य विधायी कार्यवाही को बाधित नहीं करना चाहते हैं और अक्सर व्यवधानों में भाग लेने के लिए पार्टियों से प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि सदन के सुचारू कामकाज के लिए पार्टियों के बीच आम सहमति और समन्वय की जरूरत है। हरिवंश ने सुझाव दिया कि राज्यों को अपने नियमों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे वर्तमान जरूरतों के अनुरूप हों और सदन के कामकाज के संचालन के लिए बेहतर समय आवंटन किया जा सके।

लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगो का विश्वास
सम्मेलन के दौरान जिन दो विषयों पर चर्चा हुई उनमें लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास मजबूत करना, विधायिकाओं में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की आवश्यकता और समिति प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के तरीके शामिल थे। उपसभापति ने देश में विधानमंडलों में व्यवधान के विभिन्न पैटर्न और सदन चलाने में पीठासीन अधिकारियों के समक्ष चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यों को अपने नियमों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे वर्तमान जरूरतों के अनुरूप हैं और सदन के कामकाज के संचालन में बेहतर समय आवंटन किया जा सके।

समिति प्रणाली महत्वपूर्ण
हरिवंश ने समिति प्रणाली के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हालांकि समितियां व्यवधान का प्रत्यसक्ष उत्तर नहीं हैं, लेकिन वे शीतलन प्रक्रिया के रूप में कार्य करती हैं और अप्रत्यक्ष रूप से सदन के पटल पर होने वाले टकराव को कम करने में मदद करती हैं। उन्होंने संसद में विभाग संबंधित संसदीय स्थायी समितियों के विभिन्न प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिन्होंने सरकार की नीतियों के बेहतर निर्माण और कार्यान्वयन में सहायता की है। उन्होंने विशेष रूप से राज्य विधानसभाओं में बजट जांच के महत्व और नियमों की बेहतर जांच के लिए अधीनस्थ विधान समिति को सशक्त बनाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के पीठासीन अधिकारियों ने अनुशासनात्मक मुद्दों के समाधान और समिति प्रणाली को मजबूत करने के कदमों की पहचान के लिए अपने प्रयासों और परिपाटियों पर प्रकाश डाला। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, महाराष्ट्र के माननीय राज्यपाल रमेश बैस, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी समापन समारोह में भाग लिया।

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