अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में मुआवजा निधि को मंजूरी
सीओपी-27 समापन सत्र में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने किया स्वागत
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LP Live, Egypt: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने यूएनएफसीसीसी की पार्टियों के सम्मेलन-सीओपी 27 के 27वें सत्र के समापन में जलवायु परिवर्तन में हानि और क्षति निधि की व्यंवस्थाय व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए ऐतिहासिक मुआवजा निधि को मंजूरी देने का स्वागत किया। इस मंजूरी के लिए किये गये समझौते को भविष्य की महत्वाकांक्षा का मार्ग प्रशस्त करने के दृष्टिकोण मिलेगा।
मिश्र के शर्म अल-शेख में आयोजित इस सम्मेलन विश्वा के सामूहिक जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा भारतीय शिष्ट7 प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के के प्रयासों में सतत जीवन शैलियों और खपत और उत्पादन के टिकाऊ पैटर्न की व्यदवस्थात को शामिल करने का भारत स्वागत करता है। रविवार को सुबह अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में शामिल वार्ताकारों ने उस ऐतिहासिक मुआवजा निधि को मंजूरी दी है, जिसके तहत विकसित देशों के कार्बन प्रदूषण के कारण पैदा हुई मौसम संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित हुए। इस निधि मंजूरी के तहत विकसित देशों के कार्बन प्रदूषण के कारण पैदा हुई मौसम संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित हुए अल्प विकसित देशों को मुआवजा देने के लिए एक निधि तैयार की जाएगी। उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं का सामना कर रहे गरीब देश अमीर देशों से जलवायु अनुकूलन के लिए धन देने की मांग कर रहे हैं। गरीब देशों का मानना है कि अमीर देश जो कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं, उसके चलते मौसम संबंधी हालात बदतर हुए हैं, इसलिए उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा में जलवायु परिवर्तन पर काम
उन्होंने कहा कि हम सुरक्षा निर्णय में कृषि और खाद्य सुरक्षा में जलवायु कार्रवाई के बारे में चार वर्ष काम करने का कार्यक्रम स्थापित कर रहे हैं। कृषि लाखों छोटे किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है जो जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह से प्रभावित होगी। इसलिए हमें उन पर शमन जिम्मेदारियों का बोझ नहीं डालना चाहिए। वास्तकव में भारत ने अपनी कृषि में बदलाव को अपने राष्ट्री य स्तभर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) से बाहर रखा है। हम सिर्फ बदीलाव पर काम करने का कार्यक्रम भी स्थापित कर रहे हैं। अधिकांश विकासशील देशों के लिए केवल बदलाव की तुलना डीकार्बोनाइजेशन से नहीं, बल्कि निम्न-कार्बन विकास से की जा सकती है। विकासशील देशों को अपनी पसंद के ऊर्जा मिश्रण और एसडीजी को प्राप्त करने में स्वतंत्रता दिए जाने की आवश्यकता है। इसलिए विकसित देशों का जलवायु कार्रवाई में नेतृत्व प्रदान करना वैश्विक न्यायोचित परिवर्तन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है।
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