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रामपुर तिराहा कांड के दस्तावेज गायब, एसपी से कोर्ट ने मांगा जवाब

वर्ष 1994 में मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पृथक उत्तराखंड गठन की मांग को लेकर आंदोलनकारियों की पुलिस से हुई थी झड़प। पुलिसकर्मियों पर है आंदोलनकारी महिलाओं से दुष्कर्म का आरोप

LP Live, Muzaffarnagar: रामपुर तिराहा कांड से जुड़े दस्तावेज सीबीआइ की फाइल से गायब हो गए। अब सीबीआइ की तरफ से न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया है, जिस पर न्यायाधीश ने एसपी सीबीआइ से इस मामले में पूरी रिपोर्ट मांगी है। दूसरी तरफ आरोपियों के अधिवक्ता ने न्यायालय में गवाही के दौरान आरोपी की पहचान न कराने के संबंध में प्रार्थना पत्र दिया था, जिस पर न्यायाधीश ने आदेश सुरक्षित रखा है और आदेश के लिए दो मई की तिथि निर्धारित की गई है।

एक अक्टूबर 1994 की रात को पृथक उत्तराखंड गठन की मांग को लेकर देहरादून से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों को पुलिस ने रामपुर तिराहे पर बैरिकेडिंग लगाकर रोक लिया था। रात के समय आंदोलन उग्र होेने पर पुलिस ने फायरिंग कर दी थी, जिसमें सात आंदोलनकारी की मौत हो गई थी, जबकि कई महिलाओं से दुष्कर्म के आरोप भी पुलिस पर लगे थे। सीबीआइ ने विवेचना के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। एडीजीसी प्रविंदर सिंह ने बताया कि बुधवार को मामले की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 7 शक्ति सिंह की कोर्ट में हुई। सुनवाई के दौरान सीबीआइ की तरफ से न्यायालय में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें बताया गया है कि इस मुकदमे से संबंधित मूल दस्तावेज नहीं मिल पा रहे हैं, तब तक साक्ष्य की कार्रवाई रोक दी जाए। एडीजीसी ने बताया कि इसे न्यायाधीश ने अत्यंत आपत्ति जनक मानते हुए एसपी सीबीआइ को निर्देशित किया है कि लिखित रूप से न्यायालय को अवगत कराया जाए कि मूल दस्तावेज कहां चले गए। इसकी जानकारी होने पर मूल दस्तावेज नहीं हैं और कब तक न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए क्या कार्रवाई की गई है। इसकी रिपोर्ट देने के लिए एसपी सीबीआइ को निर्देशित किया है। उधर, सुनवाई के दौरान आरोपी के अधिवक्ता की तरफ से भी न्यायालय में एक प्रार्थना पत्र दाखिल कर यह विरोध किया गया कि गवाही के दौरान आरोपी की पहचान सीधे न्यायालय के समक्ष नहीं की जा सकी। इसका सीबीआइ के अधिवक्ता ने विरोध करते हुए कहा कि आरोपी की पहचान न्यायालय में की जा सकती है। एडीजीसी ने बताया कि इस प्रार्थना पत्र पर दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस सुनने के बाद न्यायाधीश ने आदेश सुरक्षित रखा है और आदेश के लिए दो मई की तिथि निर्धारित की है।

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