

केंद्र सरकार का सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक धरोहर को सम्मान
LP Live, New Delhi: केंद्र की मोदी सरकार पिछले दस साल में अंग्रेजी की हुकूमत के प्रतीक का खत्म करने में लगी हुई है। इसी नीति के तहत केंद्र सरकार ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर ‘श्री विजयपुरम’ कर दिया है। यानी अब अंडमान-निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के नाम से नहीं, बल्कि ‘श्री विजयपुरम’ से होगी।
केंद्र सरकार के इस फैसले की जानकारी ट्वीट के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दी। उन्होंने एक्स पर लिखा है कि यह कदम देश की सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक धरोहर को सम्मान देने के उद्देश्य से उठाया गया है। वहीं देश को गुलामी के सभी प्रतीकों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प से प्रेरित होकर शुक्रवार को गृह मंत्रालय ने पोर्ट ब्लेयर का नाम ‘श्री विजयपुरम’ करने का निर्णय लिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ‘श्री विजयपुरम’ नाम हमारे स्वाधीनता के संघर्ष और इसमें अंडमान और निकोबार के योगदान को बताएगा। हमारे देश की स्वाधीनता और इतिहास में इस द्वीप का अद्वितीय स्थान रहा है। चोल साम्राज्य में नौसेना अड्डे की भूमिका निभाने वाला यह द्वीप आज देश की सुरक्षा और विकास को गति देने के लिए तैयार है। यह द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा सबसे पहले तिरंगा फहराने से लेकर सेलुलर जेल में वीर सावरकर और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा मां भारती की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया गया।

क्या है पोर्ट ब्लेयर का इतिहास
अंडमान-निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के इतिहास की पृष्ठभूमि पर नजर डाली जाए तो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1789 में बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक उपस्थिति के लिए यहां बस्ती बसाई थी। अंग्रेजों ने यहां शुरुआती दौर में अपराधियों और कैदियों को रखा। पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल यानी काला पानी के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1896 से 1906 के बीच बनाया गया था। इस जेल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को रखा गया था। इसके इतिहास का यह तथ्य भी है कि जापान के कब्जे में भी रहा पोर्ट ब्लेयर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने पोर्ट ब्लेयर पर कब्जा कर लिया था। पोर्ट ब्लेयर में नेताजी स्टेडियम है, जिसे नेताजी क्लब के नाम से भी जाना जाता है। इस क्लब का दौरा नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में किया था, जहां उन्होंने पहली बार आजाद भारत में तिरंगा फहराया था।
